A Door Into Hindi: Lesson 22

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A Door Into Hindi
By Afroz Taj
Lesson 22 Script

मुझे उस रात की एक एक बात याद है।

मैं जभी वह रात याद करती हूँ, डर जाती हूँ।

यह मेरे बचपन की बात है।

मैं उन दिनों बहुत छोटी थी।

मुझे बातें करने में बहुत मज़ा आता था।

मेरा छोटा भाई मुझ से भी ज़्यादा मज़ेदार बातें करता था।

हम रात को बहुत देर तक जागते रहते थे,

और बातों में बड़ा आनंद लेते थे।

मेरा भाई मुझे रातों में डरावनी फ़िल्मों की कहानियाँ सुनाता था।

हमें डरने में बहुत मज़ा आता था।

हमारी माता जी कहती थीं कि हम को जल्दी सोना चाहिये,

लेकिन हम फिर भी बातें करते रहते थे।


एक रात की बात है।

मैं और मेरा भाई खाना खा चुके थे,

दाँत भी साफ़ कर चुके थे।

हम दोनों चुपके चुपके कमरे में बातें कर रहे थे,

कि हम ने कमरे की पिछली खिड़की पर कुछ आवाज़ सुनी।

  हम क्या देखते हैं, कि कोई औरत खिड़की के बाहर से
हम से कुछ कहना चाहती थी।

हम दोनों खिड़की के पास गये।

"हा - हा - हा - हा"

मैंने पूचा, "क्या बात है? तुम कौन हो?"

"मैं तुम्हारी मित्र हूँ।

यहाँ बहुत से और मित्र हैं, जो तुम से बात करना चाहते हैं।

आओ, आओ बच्चो, मेरे पास आओ।

मैं तुम्हें इन से बात करवाऊँ।

  आओ बच्चो, आओ! कितने और मित्र हैं तुम्हारे।"


उस समय रात के बारह बज चुके थे।

पिछले साल मेरी माता जी ने बताया,

कि हमारे घर के दीवार के पीछे,

लोहे के दरवाज़े के बाद,

एक बहुत पुराना क़ब्रस्तान है।

जहाँ पुरानी पुरानी क़ब्रें हैं।

मैं अपने भाई के साथ चुपके से बाहर आ गये,

और घर के पीछे चली गई,

जहाँ वह बूढ़ी औरत हमारी प्रतीक्षा कर रही थी।

मैंने अपने भाई से पूचा, "वह क्या चीज़ है?"

मैंने देखा दूर जंगल में एक  रौशनी चमक रही थी।

और वहाँ से किसी औरत की रोने की आवाज़ भी आ रही थी।

उसकी आवाज़ बड़ी डरावनी थी।


"कहाँ रह गया, आओ बच्चो, आओ! मेरे साथ आओ!"

"मैं बताती हूँ, मैं कौन हूँ। हा-हा-हा-हा!

हा-हा-हा-हा!   हा-हा-हा-हा!"

(गाना)

रातों में बातें करेंगे यहीं, तुम न जाओ।

बचपना जाता है, आता नहीं, तुम न जाओ।

जाओ न, आज का है समय बात का,

  जाओ न, कि आज का है वक़्त बात का।

रातों में बातें करेंगे यहीं, तुम न जाओ।

बचपना जाता है, आता नहीं, तुम न जाओ।

बचपने के वह मज़े, वह जवानियाँ,

हम को याद है वह सब कहानियाँ।

देखना है कि सच है, सपना नहीं, तुम न जाओ।

बचपना जाता है, आता नहीं, तुम न जाओ।


मैं सोचती रही कि वह कौन था,

कोई भूत था, या वह कोई चोर था---

उस महीने मैंने यह बात किसी को नहीं बतायई।

अगले महीने, मैंने यह बात सब को बता दी।

जब मैंने यह कहानी अपनी माता जी को बताई,

तो वे बोलीं, "यह कहानी सच नहीं लगती,

ऐसा लगता है, तुम ने अवश्य ही कोई डरावना सपना देखा होगा।"

इस बात को लगभग कई साल हो चुके हैं।

मुझे अभी तक हर एक बात याद है।

मेरे छोटे भाई को इस बारे में कुछ भी याद नहीं है।

मैं आज तक सोचती हूँ कि यह सच था, सपना नहीं था।

  क्या आप बता सकते हैं, कि यह सच था, या सपना?